देखकर चलना तू अजनबी राहें है

देखकर चलना तू अजनबी राहें है

देखकर चलना तू अजनबी राहें है

 

 

देखकर चलना तू अजनबी राहें है!

हर क़दम पे  भरी दुश्मनी राहें है

 

नफ़रतों की राहों पे खोया हूँ मैं तो

खो गयी है मुझसे आशिक़ी राहें है

 

राहें आती नहीं है कोई प्यार की

आ रही है यहां बेरुख़ी राहें है

 

हम सफ़र जिंदगी में कोई भी नहीं

तन्हा चलते अपने कट रही राहें है

 

इसलिए जिंदा हूँ मैं इसी आस में

हाँ कभी तो मिलेगी  नयी राहें है

 

खो गयी नफ़रतों की मगर भीड़ में

प्यार की कब आज़म को मिली राहें है

 

 

✏

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

यह भी पढ़ें : 

रोज़ चलके देखा उल्फ़त दोस्ती की राह पे

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *