देर तक प्यार की गुफ्तगू खूब की
देर तक प्यार की गुफ्तगू खूब की

देर तक प्यार की गुफ्तगू खूब की

( Der tak pyar ki guftagu khoob ki )

 

देर तक प्यार की गुफ़्तगू ख़ूब की
उसने सूरत मेरे रू-ब-रू ख़ूब की

 

ख़ा गया हूँ दग़ा उसकी इस बात से
प्यार की उसने बातें शुरु ख़ूब की

 

दोस्ती जब से तेरी मेरी हो गयी
लोगों ने गुफ़्तगू चारसू ख़ूब की

 

फूल देने गया था उसे प्यार के
उसने उल्फ़त क्यों बेआबरू ख़ूब की

 

बेअदब हो गया आज फिर से कोई
साथ उसने मेरे तू मैं तू ख़ूब की

 

ज़ख्म ‘आज़म’ मेरे भर न पाये कभी
चोट अपने जिगर की रफ़ू ख़ूब की !

❣️

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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