देश पाल सिंह राघव ‘वाचाल’ की कविताएं | Deshpal Singh Poetry
आओ मिलकर तोड़ें टंगड़ी
स्वघोषित D. Lit ‘वाचाल’
Literature की kit ‘वाचाल’
राजनीति के बड़े frame में
रह जाता unfit ‘वाचाल’
कविता गीत लिखे कोई पर
लेता benefit ‘वाचाल’
तक़लीफ़ों में भी मुस्काए
ये कैसी habit ‘वाचाल’
अच्छे काम करे कोई भी
ले जाए credit ‘वाचाल’
साथ निभाने वाले को ही
देता है merit ‘वाचाल’
रोड़ा कोई अगर बनेगा
तो खोदेगा pit ‘वाचाल’
Whisper मच्छर या हो मक्खी
सब की खातिर HIT ‘वाचाल’
घटिया ग़ज़ल रुबाई फ़िर भी
करता है submit ‘वाचाल’
अपनी पकड़ पहुँच ताकत से
हो जाता है hit ‘वाचाल’
आओ मिलकर तोड़ें टंगड़ी
हो जाए unfit ‘वाचाल’
छैला बाबू
छैला बाबू अफलातुन्न रहता ख़ुद में सदा मगुन्न
रँग कर रखता लाल-गुलाबी छोटी उंगलिन के नाखुन्न
लम्बी घुंघराली सी जुल्फ़ें हल्की-हल्की दाढ़ी
ऐंठा-ऐंठा उड़ता फिरता लेकर छकड़ा गाड़ी
लांड़ा कुर्ता तँग पतलुन्न आधा फागुन आधा जुन्न
इत्र फुलेल लगा कर मुन्ना नक़ली ख़ुशबू बाँटे
अधोवायु के समय-समय पर करता ख़ूब धमाके
खाए गुटखा पान मलंग करता कभी नहीं दातुन्न
इधर-उधर मंडराता रहता यहाँ-वहाँ मुँह मारे
आंदोलन जीवी का चलता घरवा इसी सहारे
जब ज़हर उगल ना देता इसको मिलता कहाँ सुकुन्न
इसलिये
दर्दे-दिल दर्दे-जिगर का किस तरीक़े हो बयां
क्या हसीं खाया है धोखा तू कहाँ और मैं कहाँ
तूने तख़्ती पर लिखी खुर्ची इबारत इस तरह
मेरे दिल पर आज भी क़ायम खरोंचों के निशां
मैं तो मैं ही हूँ मगर वो और भी दिलदार होगा
इसलिये तेरे वो सारे ख़त तुझे लौटा दिये
मुझसे ज़्यादा कोई तुझको और करता प्यार होगा
लिख लिया करती थी मेरा नाम अपने हाथ पर
और इशारा आँख से करती के मैं देखूँ उधर
फ़िर अचानक क्या हुआ ये सोच कर हैरान हूँ
क्या मिला तुझ को मेरे ज़ख़्मों के टांके काट कर
ये मरीज़े-इश्क़ कितना और यूँ लाचार होगा
इसलिये तेरे वो सारे ख़त तुझे लौटा दिये
मुझ से ज़्यादा कोई तुझको और करता प्यार होगा
पर ‘उस’ से कोई
कोई पूत कोई दौलत मांगे
कोई रुतबा और शौहरत मांगे
कोई दुनिया से न्यारी प्यारी
बेहद हसीन औरत मांगे
कोई राजपाट का इच्छुक है
कोई ठाट-बाट का इच्छुक है
कोई मस्त मसनदों गद्दों में
कोई एक खाट का इच्छुक है
कोई आशिक़ मस्त बहारों का
कोई आशिक़ चाँद-सितारों का
कोई मगन फ़क़ीरी में रहता
कोई आशिक़ है भण्ड़ारों का
पर ‘उस’ से कोई कहता ही नहीं
बस एक मुझे तू मिल जाए
हो जनम-मरण से छुटकारा
मेरा लय तुझमें हो जाए
राजनीतिक व्यंग्य
वोट मांगते वक़्त कभी बेशक़ हमने जूते चाटने
अब उन से क्या लेना-देना हमने सब रिश्ते पाटे
चाहे वोटर गाली दें या हाथ ख़ुदारा मला करें
हम कुर्सी से चिपक गए हैं जलने वाले जला करें
लोगों ने विश्वास किया जो उन्हें बनाया प्रतिनिधि
लेकिन वे सब-कुछ भूले और लगे खोजने नयी विधि
कुर्सी से चिपके रहने की जो आख़िर जानी थी छिन
सुनते हैं अब रो-रो गाते जाने कहाँ गए वो दिन
कुर्सी ढिंग पहुँचे मंत्री जी शीश झुका परनाम किया
बोले तुझे जीतकर हमने जग में अपना नाम किया
इतना कह कर नेताजी ने अपनी मूँछ मरोड़ी
सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं अपनी जोड़ी
अपदस्थ मंत्री जी तन्हाइयों में रो कर
मजबूरियों पे अपनी अत्यंत क्षुब्ध होकर
आहत स्वर में बोले कुर्सी मुझे बता दे
वो दिल कहाँ से लाऊँ तेरी याद जो भुला दे
देशपाल सिंह राघव ‘वाचाल’
गुरुग्राम महानगर
हरियाणा
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