ढलती रात | Dhalti Raat
ढलती रात
( Dhalti raat )
ढलती रात हुई अंधियारी, साहिब जी ना आए।
धक-धक धड़के जिया हमारा, मन मेरा घबराए।
सनम कहो रात कहां बिताए
हाथों में मेहंदी रचके गौरी, कर कर सोलह सिंगार।
कब आएंगे प्राण प्यारे, करती प्रियतम का इंतजार।
ज्यों ज्यों रात बढ़े निशा, पून सन सन करती जाए।
रस्ता ताक रही निगाहें, दिलबर लौट घर नहीं आए।
सनम कहो रात कहां बिताए
नैनो का काजल कहता, मेरे माथे का सिंदूर पिया।
होठों की लाली पूछ रही, कहां बसा है तेरा जिया।
दिल की धड़कनें ढूंढ रही, मन को चैन नहीं आए।
सांवरी सूरत बलम की, छवि आंखों में उतर जाए।
सनम कहो रात कहां बिताए
तू प्यार का सागर ठहरा, मैं प्रेम भरी इक गागर हूं।
तू मनमौजी मतवाला है, मैं हमसफर जीवनभर हूं।
चूड़ियों की खन खन भी, तुझ बिन बोलो कैसे भाए।
घूंघट में गौरी दिलबर तुझ बिन, बोलो कैसे शरमाए।
सनम कहो रात कहां बिताए
कवि : रमाकांत सोनी
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )