Geet Yahi Haal Idhar Bhi Hai
Geet Yahi Haal Idhar Bhi Hai

यही हाल इधर भी है

( Yahi Haal Idhar Bhi Hai )

 

बेताबी बेचैनी होती, धड़कनों में धक-धक सी है।
घबराहट सी होती दिल में, यही हाल इधर भी है।
दिल में धक-धक सी है

इंतजार की वो घड़ियां, गीतों की सजती है कड़ियां।
मन का सागर ले हिलोरें, सावन की बरसे झड़िया।
प्रीत की फुहार बरस रही, मंद मंद झर झर सी है।
एक झलक पाने की चाहत, यही हाल इधर भी है।
दिल में धक-धक सी है

अधरो पे जज्बात तेरे, होठों पर मधुर तराने है।
चेहरे पर तेरी ही रौनक, लबों के गीत सुहाने है।
महकती हसीं वादियां, मोहक नजारे जिधर भी है।
खिल जाता दिल का चमन, यही हाल इधर भी है।
दिल में धक-धक सी है

इन आंखों में इन नैनों में, प्यार भरा सागर रहता।
इस दिल की धड़कनों में, प्रेम तराना नित बहता।
महकते फूलों की खुशबू, महसूस हो उधर भी है।
सांसों की ये सरगम महके, यही हाल इधर भी है।
दिल में धक-धक सी है

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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