Dil Poem

नाजुक सा जनाब दिल | Dil Poem

नाजुक सा जनाब दिल

( Nazuk sa janab dil )

 

मिलन को बेताब दिल बुन रहा ख्वाब दिल।
नाजुक सा जनाब दिल दमके महताब दिल।

प्यार भरे मधुर तराने गीत धड़कने गाती है।
नयन बिछाए राहों में आओ तुम्हें बुलाती है।

जाने क्यों मन की बेचैनी बेताबी सी होती है।
दिल की धड़कने ठहरी सी बेगानी सी होती है।

जाने क्यों दिल को ये लगता जैसे तुम पास हो।
मन का कोई मीत पुराना लगता कोई खास हो।

जाने क्यों दिल का इकतारा धुन नई सुनाता है।
जाने क्यों मन का मधुबन पुष्प नए सजाता है।

जाने क्यों नैनो की पलकें बिछ जाती है राहों में।
जाने क्यों अधर थिरकते बस तेरी ही निगाहों में।

जाने क्यों दिल के दरवाजे खुल जाते प्यार से।
जाने क्यों स्वागत होता है मौसम का बहार से।

जाने क्यों चेहरा खिलता है बस तेरे इकरार से।
जाने क्यों ये दिल धड़कता ओ मेरे दिलदार से।

 

 

कवि : रमाकांत सोनी

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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