दुस्साहस | Kavita dussahas
दुस्साहस !
( Dussahas )
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भय से भी भयभीत नहीं हो रहे हैं हम,
लाख चेतावनियों के बाद भी-
कान में तेल डाल, सो रहे हैं हम।
दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा आंकड़ा-
दानव रूपी कोरोना का,
हम ताली थाली पीट रहे-
सहारा ले रहे जादू टोना का !
सरकार जुटी है सरकार बनाने में,
सरकार बचाने में!
हम क्यों नहीं जुट रहे-
अपनी जान बचाने में।
नेताओं को फिक्र है,
पुनः कैसे जीतें?
मलाई अपनी ओर कैसे घींचे?
कैसे कुर्सी रहे बरकरार?
गाड़ियां ,नौकर, चाकर, मुफ्त आहार।
लाखों करोड़ों का हो वारा न्यारा,
सरकारी धन सब हो जाए हमारा!
पद पावर और सत्ता के मद में चूर हैं,
पीड़ित जनता जैसे तैसे जीने को मजबूर हैं।
आश्वासनों, भाषणों और कुव्यवस्था के बीच
पिस रही है जनता-
नित्य जी और मर रही है जनता।
रोजी रोजगार और व्यापार है खत्म,
लगाने वाला नहीं मिल रहा कोई मरहम।
फिर भी जरूरी सावधानियां अपनाकर-
खतरा टाल सकते हैं,
कोरोना को हरा सकते हैं!
हमारी गरीबी का लोहा मान चुकी है कोरोना,
संघर्षों के आगे चित हो चुकी है कोरोना।
तो तुम भी कम से कम-
सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करो ना!
बार बार हाथ धोओ ना !
मास्क पहनो ना!
आत्मनिर्भर बनो ना!
कोरोना से स्वयं बचो ना !
परिवार की खुशियां छीनों ना ।
सरकारी भरोसे रहो ना !
चुनाव में हिसाब करो ना!
सोच समझकर वोट दो ना!
जात पात में फंसो ना!
बच्चों को शिक्षा दो ना!
भविष्य का सवाल है,
वरना आगे इससे भी बुरा हाल है।
अभी से चेतो ना!
आपस में लड़ो ना!
मिलजुल कर रहो ना!
सच को गले लाओ,
झूठे को मजा चखाओ ।
लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।