एक चने ने
एक चने ने
मेरे आँगन नित्य सवेरे बुलबुल आती एक
सच्च बोलो-सच बोलो की मधुर लगाती टेक
मधुर लगाकर टेक मुझे हैरान करे
कैसी खोटी बातें ये नादान करे
झूठा और बेईमान भला सच कैसे बोले
ज़हर बेचने वाला अमृत कैसे तौले
मूरख पंछी मुझको कैसी सीख दे रहा
नहीं चाहिए बिन मांगे क्यों भीख दे रहा
तेरी मीठी बोली मुझको नहीं छलेगी
ढूंढ़ कोई घर और यहाँ ना दाल गलेगी
दाना पड़ा हुआ है खा या हो जा फ़ुर्र
सोच रहा क्या देख रहा क्यों टुकुर-टुकुर
भड़काया तो पछताएगा रार बढ़ेगी
जीवन भर ना भूले ऐसी मार पड़ेगी
पंछी फुदक-फुदक कर बोला सच बोलो
मेरे दिल ने कहा यार आँखें खोलो
क्रोध पे पानी डाला एक परिंदे ने
बदल लिया मन इस दुर्दांत दरिंदे ने
पर उसके साहस को मैं न सका पचा
एक चने ने भाड़ फोड़ इतिहास रचा
देशपाल सिंह राघव ‘वाचाल’
गुरुग्राम महानगर
हरियाणा
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