एक ही भूल | Ek hi Bhool
एक ही भूल
आज बरसों बाद तुम्हारा दीदार हुआ,
दूरियाँ बनी हुई थी फिर से प्यार हुआ।
लबों को तुम्हारे लबों का स्पर्श हुआ,
बदन की महक का यूँ एहसास हुआ।
ग़र ये ख़्वाब है तो ख़्वाब ही रहने दो,
मैं सो रहा हूँ सोया हुआ ही रहने दो ।
चली क्यों नही जाती हो मेरी बातों से,
जिस तरह चली गई तुम जज़्बातों से।
मिलने के लिए मैं बेचैन हो जाता हूँ,
पता है बाहों में भरने को तड़पता हूँ।
याद कर दिन रात रोता बिलखता हूँ,
गले लगाने को कितना छटपटाता हूँ!
हार्ड डिस्क को फॉर्मेट कर दिया है,
मेरे 15 साल को डिलीट कर दिया है।
फिर बैचलर लाइफ में धकेल दिया है,
किस्मत ने मेरे साथ ये छल किया है!
तुझसे क्यूँ मोहब्बत की मुझे गिला है,
तेरी बेवफाई का मुझे इनाम मिला है।
सच्चे प्यार में मिलता यही सिला है,
ज़माने से बेवफा का नाम मिला है!

कवि : सुमित मानधना ‘गौरव’
सूरत ( गुजरात )
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