अपने वोट के हथियार से तस्वीर बदल दो
अपने वोट के हथियार से तस्वीर बदल दो
सच सुनता नहीं है कोई भी जागीर बदल दो,
अपने वोट के हथियार से तस्वीर बदल दो।
कब तक सफर करोगे, मंज़िल को ढूंढने में,
ये हौंसला तो ठीक है, तदबीर बदल दो।
खोखली भी कैसे ना हो इंसाफ़ की बुनियाद,
हाकिम ही कह रहा है कि तहरीर बदल दो।
डटना है अगर शान से, दुश्मन के सामने,
तुम सियासत के अलग-अलग पीर बदल दो।
वो फिर से ना घूम पाएगा आंगन में मुल्क के,
अगर शैतान के गले की जंजीर बदल दो।
मुद्दतों से तुम्हें दुश्मन, हल्के में ले रहा है,
अपने भी मिज़ाज की तासीर बदल दो।
ज़फ़र मुझको अगर मिला तो मांगुंगा खुदा से,
मेरे मुल्क के आवाम की, तक़दीर बदल दो।
ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र
एफ-413, कड़कड़डूमा कोर्ट,
दिल्ली -32
zzafar08@gmail.com