फैशन का भूत | Fashion par kavita
फैशन का भूत
( Fashion ka bhoot )
फैशन का भूत बड़ा मजबूत,
साड़ी पर भारी पड़ गया सूट;
इसके नाम पर मची है लूट।
ठगे जा रहे युवक युवतियां,
फंस पछता रहे युवा पीढ़ियां।
टाइट जींस , फटे अंगवस्त्र पहनते,
अर्द्धनग्न सी रहते,जिस्म आधी ही ढ़कते !
ऐसे कपड़े पहन करते चुहलबाज़ीयां,
गुंडे मवाली कसते फब्तियां।
यौन अपराध का शिकार होती बेटियां,
जीवन कटती लेते सिसकियां।
बुजुर्गों की न बात मान रहे,
अंधानुकरण में फैशन अपना रहे।
इन वस्तुओं की ना गारंटी,
बस कुछ दिन दिखे यह राजसी;
चले ना चले नहीं है वापसी।
फिर कूड़ा हो जाए,
किसी को देने लायक भी न ये रह जाएं;
कुछ ही दिन में-
घर की आलमारियां कचरों से भर जाएं।
हाय! फैशन का भूत हाय,
युवाओं को तू बहुत लुभाए।
अपनी बेखुदी में मां बाप के धन को लुटाए,
पढ़ाई धन व्यापार सबकुछ ये डुबाए।
तब खुलती तेरी आंखें,
शर्मिंदा हो बगलें झांके।
अभिभावकों से तू नजरें चुराते;
मिलने से भी शरमाते।
पड़ फैशन के भूत के चक्कर,
भटक रहे लाखों युवा इधर उधर।
कितनों ने जान गंवाई?
भविष्य अपना अंधकारमय ली बनाई।
ऐ युवा पीढ़ी पहले सोचो समझो-
किस ओर हो कदम बढ़ाए!
वरना पछताने के सिवा कुछ न रह जाए।
एक कहावत है ना-
‘अब पछताए क्या होत जब चिड़ियां चुग गईं खेत’
सोचो समझो अतिशीघ्र अभी समय है शेष।