Gaay par Kavita
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गाय

( Gaay ) 

 

जहां नंदिनी वहां माधव को भी आना पड़ता है।
गोमाता की रक्षा खातिर चक्र उठाना पड़ता है।

धेनु भक्त ग्वालों की पीर दर्द हर जाना पड़ता है।
खुशियों से झोली सबकी भर जाना पड़ता है।

बजे चैन की मधुर मुरलिया गीत गाना पड़ता है।
मुस्कानो के मोती मनमोहन बरसाना पड़ता है।

दूध दही की नदिया बहे फूल खिलाना पड़ता है।
माखन चोर कन्हैया को फिर बन जाना पड़ता है।

रोम रोम में देव बसते चरण सुखसागर पड़ता है।
पल-पल हो आनंद घर में नर कीर्तिमान गढ़ता है।

सेवा से सुख मिलता गौमाता को मनाना पड़ता है।
भर देती भंडार सारे कष्टों को भी जाना पड़ता है।

 

रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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