बहुत गड़बड़ झाला है
( Bahut gadbad jhala hai )
थम सी गई आज हमारी ज़िन्दगी
और ख़ामोश है सभी की ज़ुबान।
छाया धरती पर यह कुदरत कहर
आया जो ऐसा ये कोरोना शैतान।
लगता बहुत गड़बड़ झाला है
और महासंग्राम होने वाला है।।।।
कहते है हवा में भी आज है ज़हर
बचा नही कोई गाँव, गली, शहर।
डर से ये रिश्ते आज सभी टूट रहें
भीतर से खोखला हमें ये कर रहें।
लगता बहुत गड़बड़ झाला है
और महासंग्राम होने वाला है।।।।
आज फेफड़ों में जान फंस रही है
अपनों के संग अपनें खडे़ नही है।
चोरी छुपे बेच रहें सब यह समान
क्या इससे कोविड़ का डर नही है।
लगता बहुत गड़बड़ झाला है
और महासंग्राम होने वाला है।।।।
दुकान का शटर रोज़ाना खोल रहें
सब्जियाँ व पर्चूनी समान बेच रहें।
यें दूध वालों से भी दूध सब ले रहें
बिना सोचे आदान-प्रदान कर रहें।
लगता बहुत गड़बड़ झाला है
और महासंग्राम होने वाला है।।।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )