गांधी बनना आसान नहीं
गांधी बनना आसान नहीं
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गांधी बनने को,
गांधी का धर्म-
गांधी का कर्म निभाना होगा,
सत्य अहिंसा को भी अपनाना होगा।
आज !
इस मार्ग पर चलना आसान नहीं,
गांधी बनना आसान नहीं।
सच्चाई की राहों पर-
देखो कितने हैं अवरोध?
बाहर की पूछे कौन भला-
घर में ही हैं बड़े विरोध।
शुद्ध सात्विक भोजन करना?
जीव मांस पर निर्भर न रहना।
वर्तमान समय में आसान नहीं,
गांधी बनना आसान नहीं।
जनता की भलाई खातिर-
आंदोलनों का है इतिहास ,
बोलो ! ऐसा करने का-
साहस है कितनों के पास?
आंदोलनों के बल पर ही-
गांधी ने आजादी दिलाई थी,
यूनियन जैक गिराकर तिरंगा लहराई थी।
प्रतिशोध से परहेज़ करना भी आसान नहीं,
जहां बात बात पर हो जा रही तनातनी।
पल में हो जा रही दुश्मनी,
वहां गांधी बनना आसान नहीं।
साफ सफाई और स्वच्छता अपनाना होगा,
खुद ही इसका दायित्व निभाना होगा।
कोमल पांवों से-
कांटों पर चलकर जाना होगा,
सुख दुःख में एक-दूसरे का साथ निभाना होगा।
जो इतना आसान नहीं,
गांधी बनना आसान नहीं।
‘खुद पर विश्वास’ है आजकल मुश्किल,
चाहिए इसके लिए साहस व धैर्य असीम।
जो हमारे पास नहीं,
हमें खुद पर ही विश्वास नहीं।
गांधी बनना आसान नहीं….
असहमति को झट नकार देना,
ना कहकर –
बड़ा खतरा है मोल लेना;
बोलने से पहले तोल लेना।
इसी पर भविष्य टिका है,
जिसने किया विरोध-
उसका अस्तित्व ही मिटा है।
जान हथेली पर रखकर चलना आसान नहीं!
गांधी बनना आसान नहीं…..
बिन पेंदी के लोटा हम,
निर्धारित लक्ष्य न करते हम।
ढुलमुल रवैया हैं अपनाए ,
ध्येय तय नहीं , अभी तक हैं कर पाए!
बहुविकल्पी हुए जा रहे हैं,
जरा सी ऊंच नींच में पथ बदल दे रहे हैं।
दृढ़ता जरूरी है कुछ पाने को,
पर दृढ़ रहने के लिए-
कुछ तो चाहिए खोने को!
कुछ है ही नहीं?
हाथ है खाली!
भविष्य अंधकारमय,
पल पल है आशंकाओं का भय।
जो बन बादल गरज रहे हैं,
नन्हे-मुन्ने दूध और युवा-
रोजगार को तरस रहे हैं!
ऐसी स्थिति में दृढ़ता कहां से लाएं?
क्या अपने संग औरों की जान गंवाएं?
यह इतना आसान नहीं!
गांधी बनना आसान नहीं…
?
लेखक– मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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