गणगौर का पर्व | Gangaur par Kavita
गणगौर का पर्व
( Gangaur ka parv)
यह दो शब्दों से जुड़कर बना ऐसा पावन-पर्व,
विवाहित कुॅंवारी लड़कियाॅं करती इसपर गर्व।
गण से बने भोलेशंकर गौर से बनी माॅं पार्वती,
प्रेम व पारिवारिक सौहाद्र का ये गणगौर पर्व।।
१६ दिनों तक प्रेम पूर्वक पर्व ये मनाया जाता,
पौराणिक काल से है इससे उम्मीद व आशा।
कुॅंवारी लड़कियों को होती इच्छित वर प्राप्ति,
महिलाओं को सुहागिन वरदान का विश्वासा।।
ये गणगौर की कहानी बात है बहुत ही पुरानी,
शंकर का वर पाकर शिव-शक्ति बनी जाकर।
अखण्ड सौभाग्यवती वरदान फिर मैया पाया,
हिंदू धर्म इसे मनाता राजस्थान में विशेषकर।।
गणगौर पूजन के वक्त स्त्रियाॅं लोकगीत गाती,
गौरी शंकर के पुतलें बनाकर पूजा ये करती।
सावन तीज से उत्सवों का यह आगाज़ होता,
गणगौर विसर्जन के बाद इन पे विराम होता।।
नवविवाहित स्त्री प्रथम गणगौर पीहर मनाती,
काजल रोली मेहंदी व १६-१६ बिंदी लगाती।
दूब से छांट दूध की देती गोर-२ गोमती गाती,
सुंदर वस्त्र पहनाके सुहाग वस्तुऍं भेट करती।।