गणपत लाल उदय की कविताएं | Ganpat Lal Uday Poetry

अनमोल है मानव जीवन

कभी फुर्सत मिले तो पढ़ लेना हमारी यह रचना,
किस्मत पर कभी ना रोना सदा हॅंसते ही रहना।
नही होता है पूर्ण कभी हर इन्सान का ये सपना,
हो सके तो मेहनत की आदत डालते ही रहना।।

धूप-छाॅंव, सर्दी-गर्मी और वर्षा में ख़्याल रखना,
एक दूजे को सफ़ल देखकर जलन नही रखना।
अनमोल है मानव जीवन किरदार अच्छा रखना,
हो सके तो सबसे ही ये अच्छे व्यवहार रखना।।

कभी किसी की चापलूसी व चुगली नही करना,
ये संबंध अच्छे रखने हेतु चाहें ख़ुद झुक जाना।
रखना अच्छी सोच मन में यह खोट नही रखना,
हो सके तो कष्ट में तू किसी का मरहम बनना।।

लिख रहा हूं बीता वृत्तान्त ये कैसा लगा बताना,
वास्तविकता कभी ना बदलती यह याद रखना।
बन जाना ये मोम पिघलना पड़ें तू पिघल जाना,
दीपक नही ज्योति बनना उजाला करते जाना।।

यह जीवन का सत्कर्म कभी भी व्यर्थ ना जाता,
धन दौलत लाख कमाएं सुख चैन नही मिलता।
बात में दम है संपूर्ण विश्व इस बात को जानता,
हो सके तो इंसान बन ये स्वर्ग उसे ही मिलता।।

देवताओं की ‌दीवाली

भारतवर्ष के त्योंहारों की यह बात है बड़ी निराली,
कार्तिक माह में पूर्णिमा को मनातें है देव दीवाली।
हंसी ख़ुशी संग मनातें है कोई पर्व न जाता ख़ाली,
काशी की पावन धरा पर उतरे मनाने देव दीवाली।।

एक वक्त त्रिपुरासुर दैत्य का बढ़ गया यह आतंक,
ऋषि मुनि नर नारी एवं देवो के लिए बना घातक।
तब भगवान शंकर ने काटा उस असुर का मस्तक,
उसी ख़ुशी में बधाई देने आए देवगण काशी तक।।

हिन्दू पंचांगो के अनुसार तब आऐ थें वहां देवगण,
है आज भी वहां पर उन देवगणों के कमल चरण।
आतें है हर वर्ष ज़हां देव दीवाली को भ्रमण करने,
मिलता है आशीष उन्हें और पाते ईश्वर की शरण।।

मुख्य रुप से काशी में जो गंगा तट पे मनाई जाती,
जिस दिन चारों और काशी में सजावटे की जाती।
गंगा घाट के चारों और मिट्टी के दीये जलाएं जातें,
शुभ-मुहूर्त और पूजन विधि से पूजा ‌कराई जाती।।

होती है मनोकामनाएं पूर्ण जो भक्त यहां पर आते,
दीपदान करके वहां देवताओं की कृपा दृष्टि पाते।
होता है महत्वपूर्ण इस दिन का गंगा नदी मे स्नान,
रोग दोष एवं कष्ट-पीड़ा उन सभी के दूर हो जाते।।

अब तो करलो मुलाक़ात

ना जाने इस परिवार को यह किसकी नज़र लगी,
वर्षों का प्यार और अपनापन भूला दिए है सभी।
जो शक्तिशाली, सर्वव्यापी एक परिवार था कभी,
आज मौन व्याकुल अपने भवन मे बैठें है सभी।।

सोचता हूॅं कल नया सूर्य निकलेगा तो बात होगी,
मिट जाएंगे वे गिले-शिकवे जब मुलाक़ात होगी।
नई ज़िंदगी की शुरूआत फिर परिवार संग होगी,
वह नफरतों की दीवार टूटकर चकनाचूर होगी।।

शायद यह आरज़ू समस्त परिवार वालों की होगी,
अगर किसी को ठेस लगी है तो वो भी दूर होगी।
नजदिकी फिर से बढ़ेंगी दूरी पल भर में दूर होगी,
वह सारे ग़म हम सौंप देंगे जब मुलाकातें होगी।।

शिकायतें तो बहुत सारी होगी एक-दूसरे के लिए,
लेकिन सिले हुए होट कौन खोले बताने के लिए‌।
परीक्षा में आएं पेचीदा सवाल सा हो गया जीवन,
मुॅंह से दो शब्द निकल न रहे ये अपनो के लिए।।

अब तो करलो मुलाक़ात गुजरी बातें रख दे ताक,
आखिर में एक रोज़ मिल जाएंगे हम-सब ख़ाक।
फिर नही कहना कहां है उस महापुरूष की राख,
कर ले यारा दो बात ना रख लम्बी अपनी नाक।।

मुश्किलों को हॅंसकर सहलो

गुजर जाएंगे संकट के पल मानव तू धीरज तो धर,
मोह माया का विचार त्याग दे न घूम तू इधर उधर।
मुश्किलों को हॅंसकर सहलो हौंसले की उड़ान भर,
ये सपने भी हकीकत होंगे बन जा तू ऐसा निड़र।।

यह अनुभव ही सबकों सिखाता ना हो यार निराश,
व्यर्थ चिंताओ से कुछ ना होता है चिराग़ तेरे पास।
यह परिवर्तन ही डराता एवं परिवर्तन से है विकास,
आज जो है उसके पास कल होगा वही तेरे पास।।

सुख दुःख एक जोड़ा है जो सबके जीवन में आता,
हारा वही जो लड़ा नही यह समझाता वो विधाता।
मुश्किलों से गुज़रकर ही तो हर-व्यक्ति है चमकता,
अपनी मंज़िल ख़ुद बनाकर गगन-तारों को छूता।।

कुछ न बिगड़ा अभी भी ये समय तेरे पास बहुत है,
इम्तिहान में असफलता पाना क्या नई यह बात है।
ईर्ष्या नफरत क्रोध को आने देना ना अपनें पास है,
पहुॅंच उस पड़ाव पर श्री-नारायण तुम्हारे साथ है।।

ये लड़ाई है ख़ुद की ख़ुद से चाहों तो जीत जाओगे,
ऐसी मुश्किलें तो नर जीवन में अनेक तुम पाओगे।
अगर नही देखोगे पीछे मुड़कर आगे बढ़ते जाओगे,
रखो उम्मीद ख़ुशी की तो मुश्किल हारते पाओगे।।

क्या होती है केवाईसी

क्या होती है यह केवाईसी करना इस पर विचार,
संस्थाएं जिसका कर रही है लगातार यह प्रचार।
क्या क्या इसके नियम है और क्या शर्तें स्वीकार,
जानकारी और उद्देश्य बताऊॅं आज मैं दो-चार।।

अपनें ग्राहकों की सही पहचान हेतु ये अभियान,
जो विश्वास एवं अखंडता को बल करता प्रदान।
आमतौर पर नाम-पता और जन्मतिथि है सुमार,
अवैध-गतिविधि रोककर मिले सही प्रोत्साहन।।

महत्त्वपूर्ण यह प्रक्रिया है इससे ना होना परेशान,
दस्तावेज सत्यापन हेतु हितकारक हरेक इंसान।
जानकारियां जुटाकर करता यह तुरंत ही निदान,
ऑनलाइन और ऑफलाइन है यह सारे जहान।।

इसमें सरकार के द्वारा जारी दस्तावेज है शामिल,
जैसे पेन कार्ड आधार कार्ड व बिजली का बिल‌।
पासपोर्ट मतदाता पहचान पत्र ड्राइविंग लाइसेंस,
निवास प्रमाण पत्र व राशनकार्ड भी है शामिल।।

हस्ताक्षरों से भी होती है सही ग्राहक की पहचान,
बायोमेट्रिकडेटा भी है एक विश्वसनीय समाधान।
फिंगरप्रिंट, चेहरा आईरिस व हाथों की ज्यामिति,
लेकिन आधारलिंक ओ टी पी है बहुत आसान।।

रोग से घृणा कर रोगी से नही

रोग चाहें कोई सा भी हो वो कर देता है हैरान,
समय से ईलाज न लिया तो कर देता परेशान।
लाखों लोग ले रहें आज बिमारियों का ईलाज,
देखा, सुना है मैनें इससे गई लाखों की जान।।

करना है सब मौसमी बिमारियों से ख़ुद बचाव,
जन-जन तक बात पहुॅंचाना है मेरा ये सुझाव।
पी-लेना काढ़ा बनाकर लगा लेना मरहम घाव,
मक्खी मच्छर से बचना वो शहर हो या गाॅंव।।

रोग से घृणा कर पर रोगी का करना देखभाल,
एक रोज़ मिट्टी हो जाएंगा हाड़-माॅंस व खाल।
अपना हो चाहें हो पराया बोलों यह मीठे बोल,
न आता ये किसे बोलकर जीवन है अनमोल।।

भूखें नंगे व कंगाल आज भी है अनेंक इन्सान,
एक रोटी के लिए अपना खोए हुएं है सम्मान।
दुःख अपना किसे ना सुनाते बन जाते अंजान,
झुग्गी-झोपड़ी में रहकर भी समझते है शान।।

कभी देख लो इनको मुड़कर बाबू जी धनवान,
खनकते सिक्कों से ख़ुश होकर करते बखान।
ज़िंदगी केवल जीना जानते सब-कुछ वर्तमान,
परिवार को सार्थक मानते चाहें न हो मकान।।

भाई दूज का त्योंहार

आओं मनाएं भाई-दूज का त्योंहार,
बहन को दे एक अच्छा सा उपहार।
भाई बहन का ये पवित्र ऐसा रिश्ता,
माॅं जैसा प्यार इस बहन से मिलता।।

इसी दिन का बहनें करती इन्तजार,
वर्ष में एकबार आएं पावन त्योंहार।
चेहरे पर आएं मीठी-मीठी मुस्कान,
घर-ऑंगन जाएं खुशियों की बहार।।

सजाकर लाए बहनें पूजा का थाल,
ऑंगन की शोभा बरसाएं वो प्यार।
मस्तक पे चंदन तिलक वो लगाती,
उतारकर आरती करती है सत्कार।।

एक मात्र धागे का अटूट यह बंधन,
यही संस्कृति रक्षा सूत्र अभिनन्दन।
ये हाथ सदा सुरक्षा कवच बना रहें,
लंबी उम्र पाएं भाई करती ये वंदन।।

अपार दुआएं भैया बहन से पाकर,
मिठाइयां बहन के हाथ से खाकर‌।
देता है अनमोल बहनों को उपहार,
ऐसा है यह भाई बहन का त्यौहार।।

सारा सच लिखा मैंने इस रचना में,
महत्त्व रखता है ये भी इन पर्वो में।
कई पौराणिक कथा है इसके पीछे,
जो आएं कार्तिकशुक्ल द्वितीय में।।

संघर्ष से मिलती सफलता

सफ़लता पाने के लिए करना-पड़ता है प्रयास,
सांसारिक बातें है परिवर्तन क्यों होता निराश।
आचरण, संस्कार संस्कृति से होता है विकास,
जीवन में एक लक्ष्य रखो ज़रुर होगा प्रकाश।।

सबके जीवन में आता है सुख दुःख का संघर्ष,
आत्मबल जगाओ अपना होगा तुमको सहर्ष।
चले-चलो और बढ़तें रहो बनों तुम भी आदर्श,
असफलता का सामना कर बनों तुम उत्कर्ष।।

सरल विनम्र व्यक्तित्व रखो सादा जीवन तरल,
भविष्य अपना बनानें खातिर पी जाओ गरल।
गौरव-गाथा लिखी हुई है रचा कई ने इतिहास,
चलों उठो पंख पसारो चाहें राह ना हो सरल।।

करो संकल्प हृदय अपरिमित अज्ञान दूर भगा,
हरगिज़ ना रख पीछे क़दम बोलें चाहें ये सगा।
महकादे सबकी रोम-रोम अब ऐसा कर दिखा,
चरण रज लो शारदे का दौड़ ऐसी फिर लगा।।

सही निर्णय लेकर समय से कौशल यह दिखा,
भूल जा कुछ दिनों के लिए सहपाठी व सखा।
जौहर कर अपनें ख़ून का क्या हूॅं मैं यह दिखा,
भविष्य बना अपना बेटा अन्धेरे में क्या रखा।।

मुझको जिंदा रखेंगी ये रचनाएं

मुझको जिंदा रखेंगी मेरी लिखी हुई ये‌ रचनाएं,
सरल और सीधी है जिसमें मेरी यह भावनाएं।
अल्लाह जीसस वाहेगुरु राम जिसमें है समाएं,
अन्तर्मन के है सारथी मुझे सफ़ल यह बनाएं।।

सुनो साथियों बात हमारी खज़ाना यही है मेरा,
कष्टों का बादल गिरा क़दम डगमगाया न मेरा।
दुविधा-भरे मन को समझाकर देता रहा पहरा,
कभी मुरझाया कभी मुस्कराया ये चेहरा मेरा।।

सोच समझकर लिखता रहा कविताएं में प्यारी,
सरल, सहज हिन्दी-भाषा लगी मुझको प्यारी।
सकारात्मक-बल मिला इससे बदन को हमारी,
मान-बढ़ाती गई लेखनी ये है प्राणों से प्यारी।।‌

इस लेखनी से ही बनी है आज हमारी पहचान,
लेखन करके निखरा एवं बढ़ाया मान सम्मान।
मन-मस्तिष्क, बुद्धि-विवेक से छूआ आसमान,
अस्त्र शस्त्र यही है मेरा इसी ने बनाया महान।।

इस साहित्य ने मुझको यारों कर दिया दिवाना,
देश-सेवा के संग सीखा ये काव्य-पाठ करना।
जीवन में बहुत दी परीक्षाएं किया आना जाना,
अब तो इस लेखनी संग मुझको जीना मरना।।

उधार देना सोच समझकर

निकल गई है कई दिवाली,
पर निकला नही उसका दिवाला।
जब भी जाता हूॅं पैसे माॅंगने,
घर लगा हुआ मिलता यह ताला।

क्या करूॅं मैं और क्या नही,
ऐसी पाल रखी है आज में बला।
अब दर्शन ही दुर्लभ हो गया,
पकड़ ली आज उसने यह कला।

पहले अच्छा रिश्ता था हमारा,
अब बन गया विश्वासघात वाला।
बहाने, झूठ का ले रहा सहारा,
मैं घूम रहा आज पैसे-देने वाला।

क्यों दिया पैसे उधार हे रामा,
मैं हो गया बिलकुल ही अकेला।
चक्कर पे चक्कर दे रहा मुझे,
खेल खेला वह नहले पर दहला।

न देना यारों उधार किसी को,
वह कर देगा पागल पैदल चला।
भिकारी समान वह बना देगा,
तारीख पे तारीख वो देने वाला।

गोवर्धन गिरधारी

आज पूज रहा है आपको सारा-संसार,
मौज और मस्ती संग मना रहा त्यौहार।
कभी बनकर आऍं थे आप राम-श्याम,
कई देत्य-दुष्टों का आपने किया संहार।।

रघुकुल नन्दन आप ही गिरधर गोपाल,
घर घर में सजावट गोबर गोवर्धन द्वार।
जीवन में भर दो हमारे खुशियां अपार,
पहना रहें है हम आपको फूलों के हार।।

धरा पर पधारों आप फिर से घनश्याम,
बिगड़ रहीं है धीरे-धीरे समय की चाल।
हम सब को गोपाल करों आप निहाल,
इन गायों का देखों हो रहा है बुरा हाल।।

घमण्डियों का घमण्ड किया चकनाचूर,
शरणार्थी की रक्षा आपनें की है ज़रूर।
उॅंगली पर धारण किया गोवर्धन पहाड़,
बखान आपकें पढ़ें और सुनें है भरपूर।।

अत्याचार‌ व भ्रष्टाचार हो रहा सब और,
इन पापियों के पाप से बढ़ रहा है शोर।
संकट हरो मुरलीधर जगत पालन-हार,
जिंदगी ‌को दें जाओ खुशियों की भोर।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय

अजमेर ( राजस्थान )

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *