
गणपति वंदना : दुर्मिल-छंद
( Ganpati vandana )
बल बुद्धि विधाता,सुख के दाता,
मेरे द्वार पधारो तो।
जपता हूं माला,शिव के लाला,
बिगड़े काज सवारों तो।
मेरी पीर हरो,तुम कृपा करो,
भारी कष्ट उबारो तो।
तेरा दास जान,तुम दयावान,
मेहर करो भव तारो तो।।
सिर मुकुट जड़ा है,भाग बड़ा है,
बड़ी सोच रखवाले हो।
माता के प्यारे,मन उजियारे,
नाजो से तुम पाले हो ।
हैं छोटे नैना,माने भय ना,
सब जग के रखवाले हो।
टूटे प्रेम लड़ी,रख सोच बड़ी,
देव बड़े मतवाले हो।।
तेरी शरण पड़ा,है कर्ण बड़ा,
तूं अतुलित फल दाता है।
ना वो हाथ मले ,जो राह चले,
धोखा भी पछताता है।
छोड़ो बुरी बात,सत आत्म सात,
निष्कंटक पथ पाता है।
होगा उदर भरा,हर काज सरा,
बड़ भागी कहलाता है।
मैं अरदास करूं,सिर चरण धरूं,
घटके दीप जला देना।
मैं दिशा हीन,तुम हो प्रवीण,
बिगड़ी बात बना देना।
इच्छित फल पाऊं,बढ़ता जाऊं,
सत की राह दिखा देना।
मैं वंदन करता,तुम दुख हरता
सारे कष्ट मिटा देना।।
गौरीकुंड के नंदन,करता वंदन,
भूली राह बता देना।
तुम हो प्रतिपाला,देव निराला,
मन के भाव जगा देना।
हे मंगल दायक,प्रथम विनायक,
आकर कष्ट मिटा देना।
कोई काम सरे, तुमको सुमरे,
अपना दास बना लेना।।
तेरे द्वार पड़े,कर जोड़ खड़े,
नैया पार लगा देना।
हे करुणा धारी,महिमा न्यारी,
इतना मान बढ़ा देना।
हो सब फलदायक,हे गणनायक,
बिगड़े काज बना देना।
जांगिड़ कर जोड़ें ,दिन अब थोड़े,
जैसा हूं अपना लेना।।
कवि : सुरेश कुमार जांगिड़
नवलगढ़, जिला झुंझुनू
( राजस्थान )