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एक नज़र देखों गाॅंव की ओर | Gaon par Kavita

एक नज़र देखों गाॅंव की ओर

( Ek nazar dekho gaon ki ore )

 

एक नजर देखो गाँवो की और
हालत ठीक नही है चारों और।
ज़हर उगल रहा कोरोना आज
गांव भी सुरक्षित नही है आज।।

गुस्सा भरा है हर एक-एक ठोर
सभी पड़े है अपनी-अपनी ठोर।
खाने को अनाज नही अब और
आख़िर में कब मिटेगा यह शोर।।

तड़प रहे है आज गाँवो के लोग
पूंछ रही है यह जनता सब और।
काम दिलादो हमें चाहें कुछ हो
खाने को मिल जाए यह रोटी दो।।

खेतों पर भी काम नही है आज
यह धरती बंजर हो रही है आज।
खींचातानी चल रही है सब और
गरीब पीस रहे है यहां चारों और।।

एक और एक मिलके होते है दो
लेकिन समझ रहें इन्हें ग्यारह वो।
मुंह देखते- रहते आपस में ही वो
अनाज भी ना रहा खाएं क्या वो।।

बचा हुआ कुछ भी नही है आज
गहना भी बैच दिया फिर आज।
‌‌ फिर मदद सरकार करें एक बार
खेतों मे अनाज उगाएंगे इस बार।।

गरीब किसानों के होते है ये गांव
खेती पर निर्भर रहता सारा गाँव।
गांय, बैल बकरी और रखते भैंस
गांव के अनाज से पेट भरते देश।।

 

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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