बाजार | Geet bazaar
बाजार
( Bazaar )
नफरत का बाजार गर्म है स्वार्थ की चलती आंधी।
निर्धन का रखवाला राम धनवानों की होती चांदी।
बिक रहे बाजार में दूल्हे मोटर कार बंगलो वाले।
मांगे उंचे ओहदे वालों की संस्कार जंगलों वाले।
आओ आओ जोत जलाओ कलम का जो धर्म है।
नफरत का बाजार गर्म है -2
बाजारों में सब बिकता है आदमी का ईमान यहां।
शिक्षा संस्कार बाजारू छल कपट का मान यहां।
राजनीति के मोहरे बिकते छपे खबर अखबारों में।
कुर्सी की कुर्सी बिक जाती सत्ता के गलियारों में।
खड़े बाजार बोली लगती मोलभाव बस मर्म है
नफरत का बाजार गर्म है -2
रिश्ते नाते बिकते देखे सब प्रेम प्यार बाजारों में।
सजी-धजी दुल्हनिया बिके दुनिया के बाजारों में।
बाबू बिकते अफसर बिकते नेता बिके चुनावों में।
पत्रकार मीडिया बिकते सब ऊंचे ऊंचे भावों में।
न्याय अधिकारी बिकते जाने कितने हो बेशर्म है।
नफरत का बाजार गर्म है -2
धर्म के ठेकेदार बिक रहे डॉक्टर वकील थानेदार।
चकाचौंध में फैशन बिकती संस्कृति हुई तार तार।
बाजारों में रिश्वतखोरी सब काले धंधों का बाजार।
महंगाई सर चढ़कर बोले फैल रहा है भ्रष्टाचार।
खरीद फरोख्त चलती रहती व्यापारी नित कर्म है।
नफरत का बाजार गर्म है -2
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )