मन का मैल | Geet Man ka Mail
मन का मैल
( Man ka Mail )
मन का मैल नहीं धोया तो
1.मन का मैल नहीं धोया तो, क्या होता है नहाने से
दिल मे नहीं दया घ्रणा है,तो क्या होता है दिखावे से |
घर मे भूँखी माँ बैठी है,पिता की उमर ना कमाने की |
बेटा बाहर भंडारे लगवाये,कुछ होड है पुन्य कमाने की |
मन का मैल नहीं धोया तो
2.हम भी जाते घर से बाहर,अपनी शान दिखाने को |
अपनो से घ्रणा-ईष्या-द्वेश है,औरों को प्यार जताने को |
आग भोजन-हवन को अच्छी,घर वन मे लगे जलाने को |
मुख मे प्रभु बगल मे खंजर,तो ब्यर्थ जाते गंगा नहाने को |
मन का मैल नहीं धोया तो
3.हांथ कमंण्डल बाल बडे कर,भगवा-धारी वस्त्र पहन चले |
कर्म-कुकर्मी गुण पापी के,पर भिक्षा मांगने निकल पडे |
साधु भेष को धोखा देकर,खुद मांस मदिरा का पान करें |
ईश्वर से खुद दूर हैं कोषों,सच्चे भक्तों को बदनाम करें |
मन का मैल नहीं धोया तो
4.मन को रखो आईने के जैसे,खुद की सूरत साफ दिखे |
तेरी सीरथ के गुण दूसरे गायें,खुद इतनी सुन्दर बात रखें |
सब इस सोच को अमल करें और,जीवन मे अपना लें तो |
दिश-दशा दोनो बदलेगी,सब साफ दिखेगा ज़माने को |
मन का मैल नहीं धोया तो
लेखक: सुदीश भारतवासी