घर की देवी | Ghar ki devi par kavita
घर की देवी
( Ghar ki devi )
ज्ञान के आभूषण से अलंकृत
महत्वकांक्षी,आत्मसम्मान से भरी
जीवन के संघर्षो से नही हारी
सशक्त हूं तृष्णाओं से परे हूं ।।
ओज की ज्वाला जलाकर
मैं मर्यादा के गहनों से ही
अपनी नित देह को सजाती हूं
स्त्री हूं रिश्ते सभी निभाती हूं।।
तपकर खुद को मैंने स्वर्ण बनाया
जीता दिल तब देवी नाम पाया ।
कोई उपहास उड़ाये व्यर्थ भी तो
मैं शांत ही स्वयं निकल जाती हूं।।
अपने कर्तव्य पालन,कर्मों से
घर को मैं ही स्वर्ग बनाती हूं
संस्कारों से सजी हुई नारी हूं
स्वाभिमानी मैं कहलाती हूं।।
आत्मविश्वास जगा कर खुद
ईश्वर वंदना से पवित्र मन मेरा
सबके लिए आधार बने आदर्श
तब घर की देवी कहलाती हूं ॥
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश