Ghazal Aazmane ki Khatir

आजमाने की खातिर | Ghazal Aazmane ki Khatir

आजमाने की खातिर

( Aazmane ki khatir )

 

वो अक्सर मुझे आज़माने की खातिर।
जलता रहा खुद जलाने की खातिर।।

मुहब्बत में आया तो इक बात समझी,
ये आंखें हैं आंसू बहाने की खातिर।।

लुटाकर के सब कुछ ये अंजाम देखा,
मिला न कोई दिल लगाने की खातिर।।

उजाड़े थे जिसने कई घर सुकूं के,
तरसता गया आशियाने की खातिर।।

मिरा दिल दबाया था पन्नों में उसने,
महक न रही भूल जाने की खातिर।।

जलाया दीया किसने नजदीक आकर,
रकीबों को रश्ता दिखाने की खातिर।।

कुछ भी नहीं शेष ख्वाहिश बची अब,
मेरे यार तुमको बताने की खातिर।।

 

लेखक: शेषमणि शर्मा”इलाहाबादी”
प्रा०वि०-नक्कूपुर, वि०खं०-छानबे, जनपद
मीरजापुर ( उत्तर प्रदेश )

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