है डर क्या

है डर क्या | Ghazal Hai Dar Kya

है डर क्या

( Hai Dar Kya )

भला दुनिया से घबरा कर कभी झुकता है ये सर क्या
वो अच्छा है तो अच्छा है इसे कहने में है डर क्या ।

बता दो की रिहाइश मुस्तकिल उसकी है अब ये ही
भला नैनो में बस के भी कोई जाता है बाहर क्या।

बड़ी मानूस सी कदमों की आहट कान से गुज़री
कोई मायूस लौटा है ये दरवाज़ा बजाकर क्या।

बिना उसके भी रहने का सलीका आ गया हमको
कोई पूछे ज़रा उससे करेगा अब वो आकर क्या।

मुहब्बत हो अगर सच्ची तो ठुकराना नहीं मुमकिन
कभी नदिया से मिलने में भी कतराता है सागर क्या।

अगर है वक्त मुश्किल भागने से कुछ नहीं होगा
निगाहें फेर लेने से बदल जाता है मंजर क्या।

कभी जज़्बात अपने बेहिसों पर मत करो ज़ाया
नयन बारिश की बूंदों से पिघल जाता है पत्धर क्या।

सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया  ( उत्तर प्रदेश )

यह भी पढ़ें :-

मुझपे ऐतबार कर | Ghazal Mujhpe Aitbaar Kar

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *