हक़दार नहीं थे | Ghazal Haqdaar Nahi The
हक़दार नहीं थे
( Haqdaar Nahi The )
कुछ दोस्त हमारे ही वफ़ादार नहीं थे
वरना तो कहीं हार के आसार नहीं थे
ख़ुद अपने हक़ों के हमीं हक़दार नहीं थे
हम ऐसी सियासत के तलबगार नहीं थे
झुकने को किसी बात पे तैयार नहीं थे
क्यों हम भी ज़माने से समझदार नहीं थे
हर ज़हर पिया हमने मुहब्बत का ख़ुशी से
उन पर तो ये भी रंग असरदार नहीं थे
करते भी ज़माने से भला कैसे शिकायत
जब वो ही मुहब्बत में वफ़ादार नहीं थे
कुछ दिल की ख़ताएं थीं तो साज़िश कहीं उनकी
हम सिर्फ़ अकेले ही ख़तावार नहीं थे
यह सोच लिया हमने भी उस हार से पहले
हर बार हमी जीत के हक़दार नहीं थे
सुनते हैं ज़माने की इनायत है उन्हीं पर
जो लोग कभी साहिबे-किरदार नहीं थे
बाज़ारे-मुहब्बत का ये आलम है कि तौबा
ज़रदार हज़ारों थे खरीदार नहीं थे
इक हम ही ग़ज़ल तुझको सजाने मेंं लगे हैं
क्या और जिगर मीर से फ़नकार नहीं थे
साग़र यूँ हमें शौक से सुनता है ज़माना
हम कोई गये वक़्त की सरकार नहीं थे
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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