मुहब्बत में यहाँ रुस्वा करे कोई | Ghazal ruswa
मुहब्बत में यहाँ रुस्वा करे कोई !
( Muhabbat mein yahan ruswa kare koi )
मुहब्बत में यहाँ रुस्वा करे कोई !
निगाहों से ऐसे देखा करे कोई
असर ऐसा मगर हो दोस्ती का ही
यहाँ हो वो मुझे ढूंढ़ा करे कोई
नहीं उसके गया हूँ घर मगर मैं फ़िर
मुझी से ही हंसी पर्दा करे कोई
दिया है फूल जिसको वफ़ा का ही
वफ़ा में रोज़ अब धोखा करे कोई
अकेला था बहुत मैं अंजुमन में ही
न मेरे रु ब रु चेहरा करे कोई
वहां जाकर नगर उसके मिलेगा क्या
न अब इंतिजार मेरा करे कोई
मिले ऐसा हंसी वो हम सफ़र आज़म
मुहब्बत का मुझसे वादा करे कोई