ये दुखदाई है
( Ye Dukhdai Hai )
आसमां छूती मेरे मुल्क़ में मँहगाई है
मुफ़लिसों के लिए अब दौर ये दुखदाई है
सींचते ख़ून पसीने से वो खेती अपनी
उन किसानों के भले पाँव में बेवाई है
साँस लेना हुआ दुश्वार तेरी दुनिया में
अब तो पैसों में यहाँ बिक रही पुरवाई है
दरमियाँ फ़ासले होकर न ज़ुदा हो पाएँ
याद की बदली कहीं दिल में अगर छाई है
‘मौज’ मिलती ही नहीं ज़िन्दगी जीने को यहाँ
हर ख़ुशी आज के इस दौर में हरजाई है
डी.पी.लहरे”मौज”
कवर्धा छत्तीसगढ़