ज़माने की हुक्मरानी

ज़माने की हुक्मरानी

( Zamane ki Hukmarani )

भरी दिमागों में जिन जिन के बेइमानी है
उन्हीं के बस में ज़माने की हुक्मरानी है

बना रहे हैं ये नेता सियासी मोहरा हमें
नशे में मस्त मगर अपनी नौजवानी है

सितम शिआर मेरा हौसला तो देख ज़रा
कटी ज़बान है छोड़ी न हक़ बयानी है

खड़े हैं अपने ही ऐबों की हम वकालत में
हमारी सोच में इस दर्जा बदगुमानी है

हो फ़ैज़याब ज़माना हमारी काविश से
मिसाल दुनिया में ऐसी हमें बनानी है

वतन परस्तों उठो और अब बढ़ो आगे
बहार उजड़े चमन में हमें ही लानी है

क़फ़स की तीलियां तोड़ी हैं इसलिए साग़र
पहुँच से दूर परिंदों के दाना-पानी है

Vinay

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003

यह भी पढ़ें:-

याद आती है आशियाने की | Ghazal Yaad Aati Hai Aashiyane ki

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here