जिंदगी मेरी अकेले कट रही है | Ghazal zindagi meri akele kat rahi hai
जिंदगी मेरी अकेले कट रही है
( Zindagi meri akele kat rahi hai )
जिंदगी मेरी अकेले कट रही है !
भेज कोई तो ख़ुदाया अब परी है
तोड़कर वादे वफ़ा सब प्यार के वो
भर गया है वो निगाहों में नमी है
इसलिए हल काम कोई भी न होता
के लगी शायद नज़र कोई बुरी है
दिल करे है अब नहीं उससे मिलूँ मैं
यार उसनें बात ऐसी कल कही है
दिल किसी से भी मिले है यूं नहीं अब
प्यार में मुझको वफ़ा कब मिली है
दे गयी खुशियां दग़ा ऐसा मुझे थी
ख़ूब ग़म में जीस्त हर पल कटी है
दी वफ़ाएं रोज जिसको हर क़दम पर
दोस्ती उसनें बहुत आज़म छली है