है घडी दो घडी के मुसाफिर सभी ।
है घडी दो घडी के मुसाफिर सभी ।

है घडी दो घडी के मुसाफिर सभी 

( Hai ghadi do ghadi ke musafir sabhi )

 

है घडी दो घडी के मुसाफिर सभी ।
समझते क्यूं नहीं बात ये फिर सभी।।

 

है खुदा वो बसा हर बशर में यहां।
देख पाते नहीं लोग काफिर सभी ।।

 

याद करता ना कोई किसी को यहां।
दो दिनों में रहेंगे भुलाकर सभी ।।

 

छोड़ जाना पड़ेगा सभी कुछ यहां।
बांध गठरी खड़े देख हाजिर सभी ।।

 

साथ चाहा ज़माने बड़ी भूल की।
जो पडा वक्त तो गैरहाजिर सभी।।

 

करवटें ली ज़माने ने ऐसी यहां।
रहनुमा हो गए आज नाजिर सभी ।।

 

शायरी को चुराते जो शायर “कुमार”।
है समझने लगे खुद को साहिर सभी।

 

लेखक: * मुनीश कुमार “कुमार “

हिंदी लैक्चरर
रा.वरि.मा. विद्यालय, ढाठरथ

जींद (हरियाणा)

यह भी पढ़ें : 

है सभी के दिलों को लुभाती ग़ज़ल | Munish kumar shayari

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here