Ghazal | हमें न ज़ोर हवाओं से आज़माना था
हमें न ज़ोर हवाओं से आज़माना था
( Hame Na Zor Hawaon Se Aazmana Tha )
हमें न ज़ोर हवाओं से आज़माना था
वो कच्चा धागा था उसको तो टूट जाना था
वो मेरे ज़हन में ढलता गया ग़जल की तरह
मेरा मिज़ाज ही कुछ ऐसा शायराना था
हज़ारों फूल से खिलते थे दिल के गुलशन में
बड़ा हसीन सा उसका तो मुस्कुराना था
हरेक शख़्स की आँखों में हम ही रहते थे
हमारी उनकी मुहब्बत का जब ज़माना था
हवा के साथ तो बढती थी उसकी लौ लेकिन
चराग़े-इश्क़ था इक दिन तो बुझ ही जाना था
मैं जुस्तजू में भटकता भी किस लिए उसकी
वो बेवफ़ा था उसे अपना मुँह छुपाना था
ये और बात अँधेरों ने डस लिया हमको
कभी तो हमसे ही रौशन हुआ फ़साना था
जिसे जला के पशेमां थीं बिजलियाँ इक दिन
जहां में इतना हसीं मेरा आशियाना था
हमारा दर्द है आँखों में आज भी उसकी
हमारा नक़्श उसे हर तरह मिटाना था
वो झूठ बोलता रहता था सच के लहजे में
कभी तो सामने किरदार उसका आना था
उसी में प्यार की दौलत हमें नसीब हुई
जो सर में माँ की दुआओं का शामियाना था
वो शोखियाँ वो तबस्सुम वो क़हक़हे साग़र
कभी हमारे मुक़द्दर में वो ख़जाना था
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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