हँसकर मिलते हो | Hans Kar Milte ho
हँसकर मिलते हो
( Hans Kar Milte ho )
जो तुम यूँ हँसकर मिलते हो
फूलों के माफ़िक लगते हो
ग़म से यूँ घबराना कैसा
आख़िर इससे क्यों डरते हो
तुम जैसा तो कोई नहीं,जो
माँ के चरणों में रहते हो
गाँव बुलाता है आ जाओ
क्यों तुम शहरों में बसते हो
नफ़रत के काँटे बोकर तुम
दुनिया में कैसे हँसते हो
सन्नाटा है, सूना आँगन
माँ-बाबा कैसे रहते हो
इक दिन तो सबको जाना है
जी लो जितना जी सकते हो
शैली भागवत ‘आस’
शिक्षाविद, कवयित्री एवं लेखिका
( इंदौर )