हर रहनुमा यहां झूठा निकला
हर रहनुमा यहां झूठा निकला
हर रहनुमा यहां झूठा निकला!
कोरा-कागज़ उसका वादा निकला!
सियासत की हर बिसात पे रक्खा,
अवाम का ज़ख्म ताज़ा निकला!
रोए बहुत वो मैय्यत में आ -कर,
उनकी गली से जनाज़ा निकला!
उलझा कर रंगी नारों में जनता को,
मसीहा उड़न खटोले में बैठा निकला!
मुल्क आज़ाद हुआ हालात न बदले,
वही सवाल वही फिर मसअला निकला!
रहनुमा वही बन गया मुल्क में
जिसपे ज्यादा मुकदमा निकला!
कोर्ट,कचहरी कानून हैं बेबस सब,
हर मुवक्किल क़ातिल का निकला!!
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शायर: मोहम्मद मुमताज़ हसन
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