हरि अब दर्शन दो | Poem hari ab darshan do
हरि अब दर्शन दो
( Hari ab darshan do )
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ओ री हरि,
अब दर्शन दो री।
कलयुग में-
मति गई मारी,
क्या राजा? क्या भिखारी?
जगत पापी से भरी,
भगत पापी से लड़ी।
धरा को है कष्ट अपार,
त्राहि-त्राहि करे संसार।
ओ री हरि,
अब दर्शन दो री।
असत्य सत्य पर अब है भारी,
मानवता अब हारी ही हारी।
अबला सबला बनीं दुखियारी,
सज्जन सहे दण्ड अत्याचारी।
दुर्जन बने विशाल शक्तिशाली,
भद्र सुनें अपशब्द व गाली।
ओ री हरि,
अब दर्शन दो री।
पुकारे दुखियारी,
सूखी अंखियां-
नयनन भारी।
तड़पें पीड़ा से-
कष्ट हर जा री,
ओ री हरि;
तनिक दर्शन दो री।
मची है भगदड़-
चहुंओर हाहाकार,
दुखियों की न सुने सरकार।
दुराचारियों की बढ़ी शक्ति अपार,
उनमें मित्रता और सहकार।
सत्य अहिंसा की अब हो रही हार,
जल्दी से अब सुनों पुकार;
ज्यादा न कराओ अब इंतजार।
ओ री हरि,
अब दर्शन दो री।
चलाओ सुदर्शन,
संहारो दुष्ट जन।
पाप से दबी धरती को मुक्त करो
धरा को सद्भावना से युक्त करो।
ओ री हरि,
अब दर्शन दो री।
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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