वो मजदूर है | Mazdoor kavita
वो मजदूर है
( Wo mazdoor hai : Kavita )
अरे! वो मजदूर हैं
इसीलिये तो वो मजबूर हैं
उनकी मजबूरी किसी ने न जानी
मीलों का सफर तय किया पीकर पानी।
पांव में जूते नही छाले पड़ गए थे भारी
अमीरो को तो लेने जहाज गए विदेश,
उनके लिये तो बसों के भी लाले पड़ गए थे।
अमीर घर में बैठा बोला!
आजकल तो सड़क भी सुनसान है
उनसे कहो निकल कर तो देख!
सड़क पर चारों तरफ
खून से सने पैरों के निशान है
शहर में आये थे रोजी-रोटी के लिये
लेकिन आज तो वो मरने के भी मोहताज हो गए हैं।
वो माँ कितनी मजबूर हैं
जवाब भी नही दे सकती
जब बच्चे पूछते है माँ! घर ओर कितनी दूर है…..
सड़क बीच में जन्म देकर बच्चों को
वो माँ मीलों का सफर तय करती हैं।
चुप बैठी सरकार फिर भी कुछ नहीं करती हैं
अपना होने का झूठा दिलासा ये मालिक देते थे,
इन झूठे दिलासों से आज भी लाखों मजदूर मरते हैं।
वो इसीलिये मरते हैं… क्योंकि वो मजदूर हैं!
इसलिये तो वो मजबूर हैं।।
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लेखिका : मोनिका चौबारा
( फतेहाबाद )
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