Basant poem

वसंत ऋतु पर कविता | Hindi Poem Basant

वसंत ऋतु पर कविता

उड़ा जाये पीत पात
पछुआ पवन में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।

सेमल की डाली से
बोल रहा मोर।
पाकर के कोटर से
झांके कठफोर।

जाने क्या सोच रही
गिलहरिया मन में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।

कोयलिया देख गई
आज भिनसारे,
डालों में टांग दिये
किसने अंगारे,

चारों ओर फैल गई
बात एक क्षण में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।

सारस से बगुला बोला,
“मैं तो हूॅ संत,
किसी से न कहना यह
सब कर गया बसंत,”

धीरे धीरे पैठ गई
बात सबके मन में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।

sushil bajpai

 

सुशील चन्द्र बाजपेयी

लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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