वसंत ऋतु पर कविता | Hindi Poem Basant
वसंत ऋतु पर कविता
उड़ा जाये पीत पात
पछुआ पवन में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।
सेमल की डाली से
बोल रहा मोर।
पाकर के कोटर से
झांके कठफोर।
जाने क्या सोच रही
गिलहरिया मन में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।
कोयलिया देख गई
आज भिनसारे,
डालों में टांग दिये
किसने अंगारे,
चारों ओर फैल गई
बात एक क्षण में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।
सारस से बगुला बोला,
“मैं तो हूॅ संत,
किसी से न कहना यह
सब कर गया बसंत,”
धीरे धीरे पैठ गई
बात सबके मन में।
आग लगी हुई है
पलाश वन में।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)