हो सब्ज़ा शाख हर | Ho Sabza Shaakh Har
हो सब्ज़ा शाख हर
( Ho Sabza Shaakh Har )
हो सब्ज़ा शाख हर अपने चमन की
इनायत चाहिए हमको गगन की
नज़र दुश्मन की टेढी दिख रही है
हिफ़ाज़त करनी है सबको वतन की
जवानों आज माता भारती को
ज़रूरत है तुम्हारे बाँकपन की
ज़माना जानता है किस तरह से
कमर तोड़ी है हमने राहज़न की
पकड़कर आज ग़द्दारों को यारो
मिटा दें भूख हम दार-ओ-रसन की
सपूतों को तेरे माँ भारती अब
तमन्ना है तिरंगे के कफ़न की
ठहर जाओ ज़रा तुम और साग़र
तुम्हीं ज़ीनत हो मेरी अंजुमन की
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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