Holi par Kavita in Hindi

रंगो का त्यौहार | Holi par Kavita in Hindi

रंगो का त्यौहार

( Rango ka tyohar ) 

रंगो के पर्व पर हमको शुद्ध आत्म स्वरूप पाना हैं ।
नाजुक साँसो का क्या भरोसा ? पल – पल सफल बनाना हैं ।
आती रहेगी बाधाएं भी पथ में ।
हमको तनिक नहीं घबराना हैं ।
संसार यह झूठा सपना हैं ।
कोई भी यहाँ अपना नहीं हैं ।
नश्वर सतरंगी बहारों में उलझना नहीं हैं ।
मनचाहे के पीछे क्यों व्यर्थ चिंता ढ़ोते ।
सुख – दुःख जीवन साथी समतामय बन जाना हैं ।
बाहर दौड़ लगाकर प्रभु को कैसे पायें ।
प्रभु हैं भितर घट में ज्ञान का “प्रदीप “ जलायें ।
जीवन की यही सच्ची डगर व्यवहार मधुर बन जायें ।
अनमोल जीवन धड़ियाँ भव – सागर पार तरना हैं ।
धर्मांचरण से सब संकट कट जाते ।
राग – द्वेष सभी मिट जाते ।
सत्संग की गंगा में नहाकर ।
रंगो के पर्व पर सरल पावन बन जाना हैं ।
आत्मा की मंजिल को पाना हैं ।
रंगो के पर्व पर हमको शुद्ध आत्म स्वरूप पाना हैं ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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लो आया फिर रंगो का त्यौहार,
गीत खुशी के सब गावो मल्हार।
पक्के रंगों से होली नहीं खेलना,
गुलाल लगाकर मनाना त्यौहार।।

अब ना रहा पहले जैसा हुड़-दंग,
हंसी और मजाक सहने का दम।
अब नहीं बजाते कोई ढोल चंग,
लगे है सब इन मोबाइलों मे हम।।

अब नहीं है पहले जैसा स्वभाव,
उमंग व रंग लगाने का व्यवहार।
नहीं आते परदेशी भी अपने घर,
ये रिश्ते भूल रहे अपने परिवार।।

दिल की कड़वाहट मिटालो सब,
इन्सानियत का पाठ पढ़लो अब।
गिले-शिकवे भूल कर गले लगो,
अभद्रता से होली खेलो ना अब।।

फाल्गुन मास में आता यह पर्व,
जीवन शिक्षा का रंग भरो अब।
अनेकता में एकता दर्शाता पर्व,
भाई चारा संदेश पहुँचाओं सब।।

रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )

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