हृदय | Hriday
हृदय
( Hriday )
हृदय वक्ष में स्थित,
करे तंत्र संचार।
जैसा रखे विचार मानव,
वैसा प्रवाहित हो ज्ञान।
कहते हृदय स्वस्थ रखो,
करते इसमें प्रभु निवास।
यदि दुष्टता भाव रखो,
न लग पाओगे पार।
नित योग, व्यायाम करो,
निर्मल भाव सदा रखो।
हृदय नियंत्रण तन करे,
रक्त को शुद्ध करे।
बिना रुके, बिना थके,
हृदय प्रक्रिया जारी रखे।
सागर की लहरों जैसी,
तरंगे उठती इसमें वैसी।
प्रेमियों की धड़कन हृदय,
प्रकट करे प्रेमाभाव।
नयनों में बेताबी लाए,
अधरों में शब्दो के भाव।
करता चौबीस घंटे स्पंदन,
न करता विश्राम।
इसमें भक्ति ऐसी समाई,
सर से पांव तक करे गति।
नन्द किशोर बहुखंडी
देहरादून, उत्तराखंड
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