हृदय के स्पंद हो तुम | Hriday ke Kpand Ho Tum
हृदय के स्पंद हो तुम
( Hriday ke spand ho tum )
ऊर्जस्वित प्राण करते
आदि कवि के छंद हो तुम।
हृदय के स्पंद हो तुम।
जन्म जन्मान्तर से परिचित,
किन्तु नयनों ने न देखा।
अन्तर्गुहा के घन तिमिर में,
प्रज्वलित बन रश्मि रेखा।
तुम मेरी आराधना के,
साधना के देवता हो,
आदि सीमाहीन, फिर भी
पुतलियों में बन्द हो तुम।
हृदय के स्पंद हो तुम।
एक ही आधार हो तुम,
इस विश्व पारावार में।
यदि नहीं तुम हुये अपने,
फिर शेष क्या संसार में।
सघन स्वप्निल शून्यता में,
सत्य शिव सुन्दर तुम्हीं हो,
शान्ति सुख की सर्जना में,
सहज परमानन्द हो तुम।
हृदय के स्पंद हो तुम।
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)