इच्छा | Ichcha par kavita
इच्छा
( Ichcha )
छोटी बड़ी पवित्र दूषित
अधूरी पूरी मृत जीवित
दबी तीव्र अल्पकालिक दीर्घकालिक
व नाना प्रकार की होती है,
सबको होती है।
किसी की कम या ज्यादा होती है,
किसी की पूरी तो किसी की अधूरी रह जाती है।
यह कहां से आती है?
जीवन से आती है,
जीवनोपरांत समाप्त हो जाती है।
मरणोपरांत किसी की कोई इच्छा नहीं होती!
होगी भी तो बता नहीं पाएगी?
मृत देह!
मानव मात्र में पायी जाने वाली यह इच्छा!
कभी ऊंचाइयों की सैर कराती है,
कभी रूलाती/सताती है;
तो कभी अपनों/सपनों से भी मिलाती है।
मानव में एक होड़ सी लगी है-
इच्छापूर्ति की।
जिसकी जितनी छोटी होती,
पूरी होने की संभावना ज्यादा होती है;
अपने रहन सहन परिवेश शिक्षा सामाजिक आर्थिक स्थितियों-
रीति-रिवाजों के आधार पर पनपती और मृत होती है।
जिसे पूरी करने की ललक लिए इंसान जीता मरता है,
कुछ ना कुछ करता है।
कुछ का कुछ करता है,
फिर एक दिन चुपके से-
कुछ पूरी कुछ अधूरी इच्छाओं के साथ-
इस जगत को छोड़ स्वर्गवासी हो जाता है।
इसी के साथ उसकी इच्छाओं का भी अंत हो जाता है?
जिसकी चर्चा कर लोग खूब आनंद उठाते हैं,
ठहाके लगा लगा बतियाते हैं।
मन ही मन अपनी इच्छा दबाते औरों से शरमाते हैं,
दबे पांव घर आते हैं ;
खा पीकर
अपनी इच्छा मन में लिए खाट पर सो जाते हैं।