इमली का पेड़ | Imali ka Ped
इमली का पेड़
वो चुपचाप खड़ा
बूढ़ा इमली का पेड़
पाठशाला प्रांगण में
दो मंजिला इमारत के सामने
ध्यानमग्न
बुद्ध की तरह
मानो सत्य का ज्ञान पाकर
दे रहा संदेश मानवता को
जड़ता छोड़ो
या ऋषि की भांति तपस्या में लीन
जिसने सीख लिया सम रहना
इस सावन में
नहीं आई नवीन पत्तियां
फिर भी बाँटता रहता
खड़खड़ाती इमली के फल
अब उसे नहीं लगता डर
आंधी -तूफान से
जैसे उसने समझ लिया
जीवन मरण के मर्म को
विद्यालय के प्रांगण में
देखकर खेलते बच्चों को
मन होता है उसका
साथ खेलने को
छुपाछुपी
सांताक्रूज की तरह
झोले भरकर इमली बाँटने का
वह कह रहा हो
नहीं बांध सकते बच्चों को
वक्त की तरह
कभी खेलते थे उसके सामने
बच्चों के साथ
गोरैया मोर तोते तितलियां
तेल की गंध लिए सरसों के खेत
स्वच्छ गगन
बहती मलय पवन
तारों भरी चांदनी रातों की छाया
जूगनुओं की रोशनी माया
स्वर्णिम सवेरे की लाल किरण
बारिश की पहली बूंद में छिपी मिट्टी की खुशबू
किशतियाँ बना कर
बारिश के पानी में
तैराते नहाते बच्चे
इसकी छाया में बनते
ताउम्र दोस्ती के निश्छल रिश्ते
उसने देखा है
वक्त की सिक्ता पर
नए सवेरे मिटते बनते
इसके गिरते सूखे पत्ते
टूटती गिरती टहनियां
जैसे कह रही हो
जीवन ठहराव नहीं है
आज उस एक से हैं
कितने इमली के पेड़
क्या हुआ
सावन में पत्तियां नहीं आई
वसंत आने वाला है
फिर नवपल्ल्व आएंगे
उन बच्चों की तरह जो लेकर आते हैं
अपने नवस्वपन
और पँख लेकर
उड़ जाते हैं गगन में
जैसे यही कह रहा
इमली का पेड़
बलवान सिंह कुंडू ‘सावी’
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