इंसान और पेड़ में अंतर
इंसान और पेड़ में अंतर
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वो कहीं से भी शुरूआत कर सकता है,
सदैव पाज़िटिव ही रहता है।
उसे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता
मौत के मुंह में जाकर भी
त्यागता नहीं जीजिविषा
सदैव जीवन की है उसे लालसा
कभी हिम्मत न हारता
बना लेता हूं
कहीं से भी
कैसे भी
जतन कर
एक छोटा रास्ता
फिर दुगुनी रफ्तार से
निकल पड़ता है
अस्तित्व समृद्ध करता है
लोगों को जीवनदायी आक्सीजन
फल फूल कंद मूल जलावन
देता ही रहता है
और तो और जिस कुल्हाड़ी से
हम उसे काटते हैं
उसका बेंट भी हम उससेसे ही हो पाते हैं
फिर भी काटते तनिक न लजाते हैं
कितने बेशर्म हमलोग?
उसका सर्वस्व उपभोग करने के बाद भी
न कम होती हमारी लालसा
थोड़ा और थोड़ा और करके
वन विहीन कर रहे वसुंधरा
अकूत दौलत संपदा इकट्ठा कर
बिछाते नीचे बिस्तरा
फिर अंत समय निकल जाते उसे छोड़
जिसके लिए काटे जीवन पाई पाई जोड़
नहीं काम आता वो
नहीं साथ जाता वो
वो एक वहम है
देखो समझो
किस लिए यह हाय हाय?
जब सबकुछ छोड़ के
कह जाओगे बाय बाय!
दिल दुखाओगे
रूलाओगे
याद आओगे
पर लौट कर न आओगे।
फिर मेरी टहनियों से कैसे झूल पाओगे?
मीठे फल कैसे पाओगे?
त्यागो कुल्हारी
लगाओ फुलवारी
तब देखो कैसे बनती है?
तेरी मेरी यारी!
?
लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।
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