इस्कॉन | Iskcon
इस्कॉन!
( Iskcon )
चलो ईश्वर को चलके देखते हैं,
एक बार नहीं, हजार बार देखते हैं।
सारी कायनात है उसकी बनाई,
आज चलो मुक्ति का द्वार देखते हैं।
सृजन – प्रलय खेलता है उसके हाथ,
चलकर उसका श्रृंगार देखते हैं।
आँख से आँख मिलाएँगे उससे,
उसका अलौकिक संसार देखते हैं।
महकती वो राहें बसंत के जैसी,
चलकर इस्कॉन की बहार देखते हैं।
मिलेगा न मोक्ष शराब औ शबाब से,
भक्तों का चलकर दुलार देखते हैं।
परियों के पीछे घूमते रह जाओगे,
छोड़ दुनियादारी वो फुहार देखते हैं।
राधा-कृष्ण की देखो छबि है निराली,
देवकी के नन्दन का हार देखते हैं।
हाईटाइड है जुहू-बीच की उफान पे,
चोट खाती लहरों का प्यार देखते हैं।
नदी तो एक है पर बहुत से हैं घाट,
आज उस कृष्ण का दरबार देखते हैं।
न हूँ मैं राधा और न हूँ मैं मीरा,
चलके ठाकुर की सरकार देखते हैं।
सांवली सुरतिया ऊ मोहनी मुरतिया,
राधा का वो चित्तचोर देखते हैं।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई