जय हो जय हो कलम तेरी | Jai ho Kalam Teri

जय हो जय हो कलम तेरी 

( Jai ho jai ho kalam teri ) 

 

तीर और तलवार कहां कब कर पाए वह काम कभी

कलमों के ताकत के आगे टिका कौन बलवान कभी

 

जड़चेतन में जान फूंककर पिघल पिघल स्याही लिख दी

सिंहनाद सी कलम गरज कर युग की युगभावी लिख दी

 

वीरों की बलिदान धरा पर अमिट त्याग हुंकार लिखी

शोषित दलित गरीब वंचितों के मन मलिन पुकार लिखी

 

मिट्टी में जन्में कृषक की सीकर त्याग बलिदान लिखी

धरती के मिट्टी के कण का आदर और सम्मान लिखी

 

गाथा ग्रंथ कहानी किस्से,वेद रामायण पुराण लिखी

करूण वेदना झरते आंसू दुख को परम महान लिखी

 

समय समय पर समय समय का मूल्य और परिहास लिखी

सत्ता शासन जनता का भी एक एक इतिहास लिखी

 

‌कभी कभी रोई भी कलमें देख दुखद परिणाम सभी

छिटक छिटक पन्नों पर स्याही मानों छोड़ी प्राण तभी

 

करुण वेदना रूदन डर भय तन मन का हर भाव लिखी

तब असहाय कमजोर हुआ आंखों में आंसू लिए कवि

 

उठा लिया हथियार समझ कवि कलमों ने संहार लिखी

क्या सत्ता क्या राजनीति अत्याचारों पर वार लिखी

 

बढ़ एक कदम दो चार कदम बढ़ दिल्ली दरबार चली

मजदूर किसानों के घर से सड़को पर ललकार चली

 

जय हो जय हो कलम तेरी जय जय हो जय हो लेखनी

नत मस्तक प्रणाम करूं मैं हे! तेजस अंतर्मोहिनी

 

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

यह भी पढ़ें :-

मन का महफ़िल | Man ka Mehfil

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *