जल बिन | Kavita
जल बिन
( Jal Bin )
इकदिन समंदर भी सूख जाएगा व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
घर-घर लगाकर समरसेबुल व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
जहां थी जरूरत सभी को इक गिलास पानी की
वहां चलाकर समरसेबुल व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
पानी का कीमत इक दिन जाकर मैं मछलियों से पूछा,
वो तड़प तड़प कर कहती है व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
सूखे कुएं से जाकर इक दिन मैं उनसे उनका हाल पूछा
वो रो रो कर कहने लगे व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
पेड़ पौधों से जाकर इक दिन मैं उनसे उनका हाल जाना
वो मुरझा कर कहने लगे व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
प्राकृति है अब हमसे कहती व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
प्रकृति है अब हमसे कहती व्यर्थ पानी बहाया जा रहा
कवि – धीरेंद्र सिंह नागा
(ग्राम -जवई, पोस्ट-तिल्हापुर, जिला- कौशांबी )
उत्तर प्रदेश : Pin-212218
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