जलाओ न दुनिया को | Jalao na Duniya Ko
जलाओ न दुनिया को !
( Jalao na duniya ko )
मोहब्बत की दुनिया बसा करके देखो,
हाथ से हाथ तू मिला करके देखो।
सूखे पत्ते के जैसे न जलाओ जहां को,
नफ़रत का परदा हटा करके देखो।
गिराओ न मिसाइलें इस कदर गगन से,
उजड़ते जहां को बसा करके देखो।
अमन -शान्ति से तू रहना तो सीखो,
खुशबू लबों से चुरा करके देखो।
नहीं रुक रहा वो सिलसिला जंग का,
कोई अपना दिल बढ़ा करके देखो।
लावा हुआ देखो गुस्सा सभी का,
बगावत का शोला बुझा करके देखो।
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में दुनिया,
साजिशों का जाल जला करके देखो।
खुशियों के नाम पे वो गमों को न बेचे,
जब डूब रही कश्ती बचा करके देखो।
आंसुओं का कर्ज है तेरे सर पे बहुत,
जुबानी जंग जरा घटा करके देखो।
बागों की देखभाल न उल्लू को सौंपो,
न घटे उम्र जंग की, बढ़ा करके देखो।
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक )