जरा सोचिए | Jara Sochie
जरा सोचिए!
( Jara sochie )
आजीवन
कुर्सी/सत्ता का सुख
भोगने वाले/
भोग सकने वाले
माननीय लोग
एक नहीं अनेक पदों के लिए
अलग अलग
आजीवन पेंशन पाते हैं
वही सत्ता के दंभ में
युवाओं के लिए चार साला स्कीम
लेकर आते हैं
फायदे बहुत गिनाते हैं
कभी निजीकरण का
कभी न्यू पेंशन स्कीम का।
खर्चे में कटौती जरूरी है
जो चाहते देश की प्रगति हैं…
कह, युवाओं को भरमाते हैं
पर उपदेश
औरों के लिए है
अपने लिए तो पुरानी व्यवस्था
ही सब जरूरी है
कोई कटौती मान्य नहीं
कोई त्याग स्वीकार्य नहीं
यह लालच लोभ सामान्य नहीं।
जन आम के घर चीनी राशन ना हो
कोई बात नहीं
अपने लिए
रोज दीवाली होली ही चाहिए..
छप्पन भोग ना हो थाली में
ऐसी कोई रात नहीं चाहिए उन्हें!
पर श्रीमान
उपदेश देने से पहले
स्वयं की सुख सुविधा में कटौती कर
एक उदाहरण दीजिए
आदर्श एक ऐसा प्रस्तुत कीजिए
तब जाकर
युवाओं के भविष्य तय कीजिए!
माननीय सम्माननीय नेताजी
दिल युवाओं का ऐसे जीतीए।
लेखक–मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।