जातिवाद की आग | Jativad ki Aag
जातिवाद की आग
( Jativad ki aag )
जातिवाद की आग न सुलगाओ यारों,
अपनी कौमी एकता न घटाओ यारों।
बे- नूर जिंदगी जीने से क्या फायदा?
देश की सूरत फिर न बिगाड़ो यारों।
नदियों खून बहा तब देश हुआ आजाद,
देशभक्ति का ग्राफ न झुकाओ यारों।
मनुष्य होना अभी है एक कल्पना,
जीते जी इंसानियत को न मारो यारों।
अर्श को छू रही है एक तरफ उपलब्धि,
अपने देश का संस्कार न मिटाओ यारों।
मत छलो, मत रौदों, किसी जाति को तू,
घी डालकर आग न बुझाओ यारों।
मत लाल करो चेहरा किसी कोख का,
लोकतंत्र के ऊपर धूल न चढ़ाओ यारों।
जमीं से नाप दिया तूने सूरज-चाँद को,
उजले मन पे काई न जमाओ यारों।
इंद्रधनुष – सा रंगीन है ये मेरा चमन,
माँ भारती की पीड़ा न बढ़ाओ यारों।
बसंत में खींजाँ का आवाहन ठीक नहीं,
छूत -छुवाई की बात न उछालो यारों।
लेखक : रामकेश एम. यादव , मुंबई
( रॉयल्टी प्राप्त कवि व लेखक)