विश्वास

( Vishwas ) 

 

माना ,मैं कुछ नही
नंदी भर हूं उनके सागर की
तब भी गर्व है मुझे
की उनकी इकाई तो हूं !

विश्वास है मुझे
कर्म ही मंजिल है मेरी
पहुचूं न पहुंचूं मुकाम तक
परिणाम तो है वक्त के गर्भ मे
तब भी ,गर्व है मुझे
की मेरा वजूद तो है !

ख्वाहिश नही महासागर की
सागर भी शायद न बन पाऊं
सरोवर भी कम तो नही
तब भी गर्व है मुझे
की जल तो बनकर रहूंगा ही !

समझौता करूं स्वाभिमान से
यह गंवारा नही मुझे
विनम्रता मे नम्रता भी
सीमित है एक सीमा तक ही
टूटा हूं खुद मे भी कई बार
तब भी गर्व है मुझे
की अभी तक बिखरा नही हूं !

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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