काश वो जीवन में आए ही न होते

काश वो जीवन में आए ही न होते

काश वो जीवन में आए ही न होते

 

 

काश वो जीवन में आए ही न होते।

दिल में यूं मेरे समाए ही न होते।।

 

होती मोहब्बत अगर उनको भी हमसे।

उसने ख़त मेरे जलाए ही न होते।।

 

साथ देते ग़र वो मेरा हर कहीं हर मोड़ पर तो।

बीच रस्ते ये कदम यूं डगमगाए ही न होते।।

 

दूर सबसे कर दिया नज़दीक मेरे आ न पाए।

अपने  से होकर भी हम उनसे पराए ही न होते।।

 

लौट आएंगे कभी तो भूल अपनी मानकर वो।

व्यर्थ अपने रात- दिन हमने गँवाए ही न होते।।

 

हाल- ए -दिल अपना ग़ज़लों में न कहते।

तेरी महफिल में “कुमार” ग़र यूं बुलाए ही न होते।।

 

 

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कवि व शायर: Ⓜ मुनीश कुमार “कुमार”
(हिंदी लैक्चरर )
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)

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तिरंगा | Tiranga par kavita

 

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